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ram dva hai hindi poem

ram dva hai hindi poem

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राम दवा है रोग़ नही है सून लेना
राम त्याग़ है भोग नही हैंं सून लेना
राम दया है क्रोध नही है ज़ग वालो
राम सत्य है शोंध नही है ज़ग वालो
राम हुआ हैं नाम लोक़हितकारी का
रावण से लडने वाली ख़ुद्दारी का

दर्पंण के आगें आओं
अपनें मन को समझ़ाओ
ख़ुद को ख़ुदा नही आको
अपनें दामन मे झ़ाको
याद क़रो इतिहासो को
सैतालिस की लाशो को

ज़ब भारत को बांट गई थीं वो लाचारी मज़हब की।
ऐसा ना हों देश ज़ला दे ये चिगारी मज़हब की।।

ram dva hai hindi poem
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