जोशीमठ जमीन में धंस रहा है.
अपना जोशीमठ विकास की भेंट चढ़ रहा है,
धीरे धीरे जोशीमठ आज जमीन में धंस रहा हैं।
सुरंगों में समा रहे हैं खेत खलियान औऱ घर,
चारों ओर भय अपनी जड़ों से बिछड़ने का डर।
सरकार बस आंख मूंद कर तमाशा देख रही है,
जोशीमठ की आवाम रात दिन चीख रही है।
अनियोजित विकास की दौड़ का ये अंजाम हैं,
पहाड़ की छाती पर बनते बड़े बड़े डाम हैं।
अपनी इस मातृभूमि से बेघर हो रहे हैं लोग,
हर रोज फट रही है जोशीमठ की कोख।
दफन न हो जाये जोशीमठ कहीं इतिहास में,
अपनी प्राण आहुति न दे दे मानव के विकास में।
भूमि है जोशीमठ शंकराचार्य के वेद ज्ञान की,
भूमि हैं ये जोशीमठ हिमालय के अभिमान की।
आओ इसे बचाने के लिए अपनी आवाज उठायें
सोए सत्तासीन लोगों को आवाज देकर जगाएं
अपना जोशीमठ विकास की भेंट चढ़ रहा है,
धीरे धीरे जोशीमठ आज जमीन में धंस रहा हैं।
जोशीमठ जमीन में धंस रहा है.