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धर्मवीर भारती की कविता बरसों के बाद उसी सूने आँगन में जाकर चुपचाप खड़े होना

धर्मवीर भारती की कविता बरसों के बाद उसी सूने आँगन में जाकर चुपचाप खड़े होना

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धर्मवीर भारती की कविता 'बरसों के बाद उसी सूने आँगन में जाकर चुपचाप खड़े होना'

बरसों के बाद उसी सूने- आँगन में
जाकर चुपचाप खड़े होना
रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना
मन का कोना-कोना

कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठना
फिर आकर बाँहों में खो जाना
अकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरी
फिर गहरा सन्नाटा हो जाना
दो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों का जुड़ना,
कँपना, बेबस हो गिर जाना

रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना
मन को कोना-कोना
बरसों के बाद उसी सूने-से आंगन में
जाकर चुपचाप खड़े होना। 

धर्मवीर भारती की कविता बरसों के बाद उसी सूने आँगन में जाकर चुपचाप खड़े होना
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