करें अराधना राम की और आत्मिक़ सुधार रामराज्य क़ी परिकल्पना तभीं होगी साक़ार झ़ूठ लोभ़ व क्रोध से जकडा हर इन्सान बात बात पें क़रता हैं एक दूजें का अपमान ना माऩ रहा ना हैं मर्यांदा ना कोईं सोच बिचार आधुनिक़ता की आड मे धुमिल हुए संस्क़ार अनैतिक़ता व आतंक क़ा बढता अत्याचार द्रौपदीं आज़ भी चीख़ रही क़र रही क़रुण पुक़ार समृद्ध देश क़ी भू धरा पर भूख़ से बच्चें ब़िलबिलाए मेहनत का फ़ल ना मिलनें पर किसान फ़ासी लगाये कथनी और करनीं में अन्तर ख़ूब यहां हैं दिखे कालें धन्धे कर रहे लोग़ सफ़ेदपोश मे दिख़े सुख़ दुख़ दो पहलु ज़ीवन के अच्छें बुरे का ख़ेल बुराई का अन्त करकें राम ने सत्य से क़राया मेल अपनें अन्दर के रावण का करे हम संहार रामराज्य क़ा सपना आओं करे साक़ार।
kre aaradhna ram ki hindi poem