अधिक मूल्यवान्
एक रात गोनू झा गाछी जा रहे थे। पत्नी ने मना करते हुए कहा, 'रात में मत जाइए; चोर-उचक्के कनौसी[कर्ण अंकुशिका ] छीन लेंगे।'
उन्हॊंने हॅंसते हुए कहा, आपको मेरी जान की परवाह नहीं है कि कीड़े-मकोड़े काट सकते हैं। आपके लिए तो गहना ही मुझसे कीमती है।'
पत्नी झेंप गई, किंतु सॅंभलती हुई बोलीं, 'नहीं, आपके सामने आभूषण के क्या मोल?
गोनू झा को चुहल सूझी और बोले, 'तो ठीक है; जाँच लूँगा।'
एक शाम उन्हें न जाने क्या हो गया? गोनू झा की मृत्यु से घर में कोहराम मच गया। रात अधिक न हो जाए, इसलिए झटपट श्मशान ले जाने की तैयारी होने लगी।
अरथी पर बाँधने का काम शुरू होने को ही था कि पत्नी का ध्यान कनौसी पर गया। वह रुँधे गले से हड़बड़ाहट में बोलीं, 'वे गहना तो पहने ही हुए हैं; उसे तो खोल लें। आधे तोले का है।
इतना सुनते ही गोनू झा बैठ गए। सभी विस्मित! कहने लगे, 'हाय रे दैव! यह आठ आने की कनौसी मुझसे भी मूल्यवान है!
फिर पुरोहित की ओर मुखातिब होकर कहा, 'आज मैं समझ गया कि दुनिया कैसी स्वार्थी है। इसकी असली पहचान मरने के बाद ही होती है।'
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