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सरस्वती पूजा

सरस्वती पूजा

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सरस्वती पूजा

भारत के दक्षिण में केरल एवं तमिलनाडु में नवरात्री त्यौहार के आखिरी तीन दिन मतलब अष्टमी, नवमी एवं दशमी के दिन सरस्वती देवी की पूजा की जाती है सरस्वती पूजा की शुरुवात, सरस्वती प्रतिमा की स्थापना जिसे व्य्पू कहते है, उससे होता है अष्टमी के दिन सभी ज्ञानवर्धक पुस्तकों को पूजा के लिए एक साथ रखा जाता है, ऐसा खुद के घर में, या किसी स्कूल में या किसी मंदिर में किया जाता है, बाद सुबह, इन पुस्तकों को पढने के लिए उठा लिया जाता है, इसे पूजा एदुप्पू कहते है बच्चे इस पूजा में बहुत खुश होते है, क्यूंकि  इस दौरान उन्हें पढाई से छुट्टी मिल जाती है केरल में दशमी के दिन ज़हथिनिरुत्हू का त्यौहार मनाया जाता है, इसमें छोटे बच्चों को पहली बार लिखना सिखाया जाता है, इसके बाद उनका किसी स्कूल में दाखिला कराया जाता है, इसे विद्याआरम्भं भी कहते है बच्चे को घर का कोई बड़ा या कोई टीचर चावल से भरी थाल में ऊँगली से लिखना सिखाता है.

भारत से बाहर नेपाल, म्यांमार, जापान, कंबोडिया, थाईलैंड एवं इण्डोनेशिया में भी सरस्वती पूजा का विशेष महत्त्व है.

सरस्वती माता विद्या एवम संगीत की देवी कही जाती हैं. यह श्वेत वस्त्र धारण करती हैं. इनका वाहन हंस हैं इनके हाथों में वीणा, पुस्तक, कमल एवम माला हैं. यह ज्ञान की देवी हर मनुष्य को बुद्धि प्रदान कर सकती हैं. यह स्वभाव से अत्यंत कोमल हैं. माँ शारदा, विद्या दायिनी, वागेश्वरी, वाणी आदि कई नामों से इन्हें पुकारा जाता हैं.

कई लोग सरस्वती पूजा द्वितीया की तिथि में करते हैं और कई लोग पंचमी से नवमी तक माँ सरस्वती की पूजा करते हैं, इसमें पंचमी को सरस्वती घट स्थापना की जाती हैं एवम नवमी के दिन सरस्वती विसर्जन किया जाता हैं.

सरस्वती पूजा महत्व 

माता सरस्वती का जन्म बसंत पंचमी के दिन हुआ था. इस दिन इनकी पूजा का महत्व सभी पुराणों में मिलता हैं.लेकिन दुर्गा नवमी के समय भी सरस्वती पूजा का महत्व होता हैं. मान्यतानुसार नव दुर्गा के दुसरे दिन माता सरस्वती का पूजन किया जाता हैं. कई जगहों पर पुरे नौ दिन माँ सरस्वती, माँ दुर्गा एवम माता लक्ष्मी की प्रतिमा बैठाकर विधि विधान से इनकी पूजा की जाती हैं.

सूर, संगीत एवम कला के प्रेमी सरस्वती माता का पूजन बड़े उत्साह एवं उल्लास से करते हैं. माता सरस्वती की पूजा से मनुष्य में ज्ञान का विकास होता हैं. इन्ही की कृपा से मनुष्य बंदर योनी से इन्सान बना. मनुष्य में सभ्यता का विकास हुआ. माँ सरस्वती ब्रह्मा जी की अर्धागनी कहलाती हैं, जिन्होंने श्रृष्टि की रचना की और उसी सुंदर श्रृष्टि में देवी सरस्वती ने ज्ञान, कला एवम सभ्यता का विकास किया.

सरस्वती देवी की पूजा से मंद बुद्धिजीवी का विकास होता है, अर्थात जो व्यक्ति मन को एकाग्र करते हुए माँ के चरणों में स्वयं को समर्पित करता हैं उसका विकास निश्चित हैं. माँ सरस्वती की पूजा अर्चना से जड़ मंद बुद्धि कालिदास के जीवन का उद्धार हुआ और वे एक सफल कवी के रूप में विश्व विख्यात हुए.

शिक्षा के मंदिरों एवम संगीतालय में माँ भगवती सरस्वती की पूजा की जाती हैं. सरस्वती वंदना एवम स्त्रोत का पाठ एवम गायन किया जाता हैं. वीणा इनका मुख्य वाद्ययंत्र हैं जिसे माँ सरस्वती का रूप माना जाता हैं. 

सरस्वती माता कमल पर आसीत रहती हैं इसके पीछे एक बहुत बड़ा संदेश मिलता हैं. माँ अपने बच्चो को यह सिखाती हैं, कैसी भी बुरी स्थिती अथवा संगति क्यूँ न हो, अगर अपने चित्त पर नियंत्रण रख अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ेंगे, तो यह कीचड़ रूपी असंगति एवम विकट समस्या के बीच भी कमल की तरह शोभायमान होंगे.

सरस्वती पूजा विधि 

सरस्वती माता की पूजा का महत्व वर्ष में दो बार निकालता है, एक बसंत पंचमी के दिन और दूसरा नव दुर्गा के समय.

विद्या दायिनी माँ सरस्वती श्वेत वस्त्र धारिणी है. इनकी पूजा हर घर में की जाती है. माँ सरस्वती विद्या एवम कला की देवी हैं इन्हें नौ दुर्गा में स्थापित किया जाता हैं और पुरे विधान के साथ पूजा कर इनके घट की स्थापना की जाती हैं. मान्यतानुसार इन नौ दिनों में पांचवे दिन से माता सरस्वती की प्रतिमा बैठाई जाती हैं और नवमी के दिन विधि विधान से पूजा कर इनका विसर्जन किया जाता हैं.

माँ सरस्वती की पूजा के विशेष नियम होते हैं, जिसे जानना पूजा को सफल बनाने के लिए बहुत जरूरी होता है. यहाँ पर घर में सरस्वती पूजा करने की समस्त जानकारियाँ दी जा रही हैं.

  • जिस दिन सरस्वती पूजा होती है, उस दिन आपको सुबह उठने की आवश्यकता होती है. सुबह नहाते समय पानी में नीम और तुलसी मिलानी चाहिए.
  • प्रातःकाल में स्नान से पूर्व शरीर पर हल्दी और नीम का लेप लगाना चाहिए. इससे शरीर पूरी तरह शुद्ध हो जाता है, और अब स्नान के बाद सफेद या पीला कपड़ा पहनना चाहिए.
  • जिस स्थान पर पूजा करनी हो, वहाँ साफ कर लें और उसे माला, फूल आदि से सजा लें और माँ की प्रतिमा स्थापित करें.
  • प्रतिमा स्थापित करने के बाद दवात को दूध से भर दें और उसमे लकड़ी का एक कलम रखें. साथ ही अपनी कुछ किताबें और यदि कोई वाद्य यंत्र हो तो माँ के चरणों के पास रख दें.
  • अब एक ताम्र पात्र में कलश स्थापना करें. इसमें आम्र-पल्लव रखें और उसपर नारियल रख दें. यदि संभव हो तो आम्र पल्लव के ऊपर एक पान का पत्ता भी समर्पित करें.
  • हर पूजन कर्म की तरह माँ सरस्वती की पूजा में भी आप भगवान गणेश की मूर्ति रख सकते हैं, इससे भगवान गणेश की पूजा का भी फल प्राप्त होगा.
  • मूर्ति स्थापना के बाद आप दीपक प्रज्ज्वलित करें और माँ के सामने रखें, इसके बाद धूप जला कर माँ को दिखाएँ.
  • धूप दीप दिखा देने के बाद हाथ में अक्षत, रोली आदि लेकर माँ के चरणों में समर्पित करें. दूर्वा भगवान गणेश को चढ़ाएं.
  • इसके बाद फल- प्रसाद आदि भगवान के सामने रखें. ध्यान रखें कि आपके पास पाँच बिन कटे फल भी होने चाहिये, ये फल ही माँ सरस्वती को चढ़ते है, साथ ही पंचामृत भी अर्पित करें.  
  • इसके उपरान्त हाथ में पुष्प ले कर प्रार्थना करें और पहले भगवान गणेश के चरणों पर इसे समर्पित करें और इसके बाद माँ सरस्वती के चरणों पर. इस समय एक विशेष वंदना की जाती है, जिसे सरस्वती वंदना कहते है.

सरस्वती पूजा शायरी 

  • विद्या दायिनी, हंस वाहिनी माँ भगवती तेरे चरणों में झुकाते शीष हे देवी कृपा कर हे मैया दे अपना आशीष सदा रहे अनुकम्पा तेरी रहे सदा प्रविश

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  • श्वेताम्बर हैं जिसका हंस हैं वहाँ जिसका वीणा, पुराण जो धारण करती ऐसी माँ शारदा मैं करू तेरी भक्ति

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  • कमल पुष्प पर आसीत माँ देती ज्ञान का सागर माँ कहती कीचड़ में भी कमल बनो अपने कर्मो से महान बनो

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  • तू स्वर की दाता हैं,

 तू ही वर्णों की ज्ञाता.

तुझमे ही नवाते शीष,

हे शारदा मैया दे अपना आशीष.
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