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ye jang hindi poem

ye jang hindi poem

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ये जंग
अपनों के बीच
ले आयी
सम्बन्धों में अहं खीच।
रोप गयी
आँगन में जहरीली दूब
एकाकीपन से
घिरा घर है
जो चहचहाहट से
भरा था पहले खूब।

बेटे-बहू के
आपसी मन मुटाव में
बुजुर्ग दपंति टूटे
अपने-अपने से ही रहे रूठे।

जिस घर को
बरसों तक
स्नेह से सींचा
अब कहा-सुनी में
बच्चों तक को खींचा।
कब…
एक मामूली-सा झगड़ा
संयुक्त परिवार को तोड़ गया
जहाँ
खुशहाली हुआ करती थी
वहाँ कई रिश्ते
रोने बिलखने को पीछे छोड़ गया।

ye jang hindi poem
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