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अंतिम उपदेश

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अंतिम उपदेश

गोनू झा बाजार करने गए। वहा एक सेठ को मजदूर की तलाश थी। उसे एक बड़ा बक्सा ढुलवाना था। वह मजदूरी में तीन कोसों के लिए उपदेश देने का वादा कर रहा था।

उसकी शर्त सुनकर मजदूर बिदककर भाग जाते थे। पेट के लिए उपदेश का क्या मोल! और जिसका पेट भरा हो, वह बेगार में बक्सा क्यों ढोए?

कोई मजदूर तैयार नहीं हुआ और सेठ भी अपनी शर्त से डिग नहीं रहा था। वह वैसे ही मजदूर की तलाश में बेफिक्र बना रहा।

गोनू झा को भी इस बात का पता चला। उन्होंने सोचा कि 'भूखे भजन न होई गोपाला, तो ठीक है, पर ईश्वर की कृपा से मेरे साथ यह नौबत नहीं है और धन कमाने के और भी कई तरीके हैं। फिर मजदूरी के बदले उपदेश देनेवाला संयोग से ही मिलेगा; इसलिए क्यों न आज वे दुर्लभ उपदेश ही जान लिए जाऍं!

गोनू झा सेठ के पास पहुँचकर बोले, 'सेठजी, इसमें क्या है?

गोनू झा ने प्रश्न को टालते हुए कहा, 'तुम्हें इससे क्या मतलब? सेठ ने भी सेठ के समक्ष एक शर्त रखते हुए कहा, 'सेठजी, हर कोस के मध्य में एक उपदेश देना होगा?

सेठ ने गंतव्य स्थान पहुँचने से पूर्व तीनों उपदेश कह देने की शर्त स्वीकार ली। गोनू झा ने ज्योंही असावधानी पूर्वक बक्सा उठाना चाहा सेठ ने टॊकते हुए कहा, 'अरे, रे, रे! यह क्या कर रहे हो? इसे सावधानी से उठाओ।'

एवमस्तु! आधा कोस पार कर लेने के बाद गोनू झा ने सेठ को उपदेश देने के लिए कहा। उसने पहली नसीहत दी, 'ऎसे व्यक्ति पर कभी विश्वास नहीं करो, जो यह कहे कि सिर्फ अपना पेट भरने से तो भूखा रहना अच्छा।'

गोनू झा को बात जॅंची। एक कोस जाने पर फिर दूसरा उपदेश देने को कहा।

सेठ प्रसन्नतापूर्वक दूसरा उपदेश बोला, 'ऎसे आदमी पर भी कभी विश्वास मत करना, जो यह कहे कि घुड़सवारी से बेहतर है पैदल चलना।'

गोनू झा को यह भी अच्छा लगा, क्योंकि जिसे घुड़सवारी की सुविधा होगी, वह पैदल क्यों चलेगा?

फिर एक कोस जाने पर गोनू झा ने तीसरे उपदेश की याद दिलाई। सेठ ने झुँझलाते हुए कहा, अभी हड़बड़ी क्या है! आधा कोस तो बाकी ही है।

गोनू झा चुप। फिर थोड़ी देर बाद स्मरण कराया। सेठ बात बदलकर रास्ते की दुरूहता बताकर रास्ता पार कर लेना चाहता था।

कम ही दूरी रह गई थी। गोनू झा ने धमकी के लहजे में कहा, 'सेठजी, प्रत्येक कोस के मध्य में उपदेश देने की शर्त आपने स्वीकार की थी और अब तो पाँच-सात फलांग का ही फासला है, इसलिए जल्दी कह दें।

सेठ ने विजयी मुस्कान बिखेरते हुए महान उपदेशक की भाँति कहा, 'ऎसे आदमी पर भी विश्वास मत करना, जो यह कहे कि संसार में तुमसे भी बड़ा कोई मूर्ख है।

गोनू झा ने तीसरे उपदेश पर गौर किया, किंतु शर्त के अनुसार मंजिल तक पहुँचना था, सो चुपचाप चलते रहे। बक्सा उतारने का जब समय आया तो आराम से रखने की बजाय उन्होंने जोर से नीचे पटक दिया।

सेठ 'हैं-हैं करता रहा, तब तक तो बक्सा पटका जा चुका था। सेठ माथे पर हाथ रखकर बैठ गया, क्योंकि उसमें क्राकरी का सामान था।

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