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ye dstur hai hindi poem

ye dstur hai hindi poem

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माश्रे का तो ये दस्तूर है
न जाने बेटियों का क्या कसूर है

माँ बाप भी बेटियों की विदाई के लिए मजबूर है
लाड से पाल के दुसरो के हवाले करना बस यही एक जिंदगी का उसूल है

बड़ी चाहतो से तो विदा कर के लाते है दुसरो की बेटियों को अपने घर
कुछ ही अर्शे में वो सब चाहते चकना चूर है

फिर कुछ दिन में किसी की बेटी दिन रात के लिए
आप के लिए फ़क्त एक मजदूर है

मेरी माँ ने तो बड़ी उम्मीद से तुम्हारे हवाले किया था
तुमने भी तो साथ देने का वादा किया था

मेरी आँखों में आंसू ना आने देने का इरादा भी किया था
न जाने फिर अब हर बात पर तुम्हे ये लगता है कि बस मेरा ही कसूर है

बस मेरे ही दिमाग में फितूर है
मेरे मामले में आकर क्यों हर रिश्ता मजबूर है

माश्रे का तो बस यही एक दस्तूर है
क्या बेटी बन के आना ये मेरा कसूर है

 

ye dstur hai hindi poem
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