वो मेरा हो नहीं सकता जिसने मेरा चैन छीना है,
ज़हर ना चाह कर भी पर मुझे जीवन में पीना है।
धार है तेज नदिया की और इसे पार करना है,
ना जाने क्या करे किस्मत मेरा टूटा सफीना है।
कोई तो पा गया सब कुछ मुकद्दर ही का खेला है,
किसी का उम्र भर देखो फ़कत बहता पसीना है।
मेरी जो प्यास को देखा तो वो उपहास करता है,
उसे तो हर जगह बस दिख रहा सावन महीना है।
नहीं उम्मीद मधुकर अब बहारे फिर से आएंगी,
चुनी जो राह जीवन की उसी पे हँस के जीना है।
usi pe hss ke jina hai hindi poem