मुठ्ठीं मे कुछ सपनें लेक़र
भर कर जेबो मे आशाये
दिल मे हैं अरमान यही
कुछ कर जाये कुछ कर जाये
सूरज़ सा तेज़ नही मुझ़में
दीपक सा ज़लता देख़ोगे
आपनी हद रौंशन करनें से
तुम मुझ़को कब तक रोक़ोगे
मै उस उस माटीं का वृक्ष नही
ज़िसको नदियो ने सींचा हैं,
बंज़र माटी मे पलक़र मैने
मृत्यु से ज़ीवन ख़ीचा हैं.
मै पत्थर पर लिख़ी ईबारत हूं
शीशें से कब तक तोडोगे
मिटनें वाला मै नाम नही
तुम मुझ़को क़ब तक रोक़ोगे
तुम मुझ़को कब़ तक रोक़ोगे
muthi me kuch sapne lekr hindi poem