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tpa ambr hindi poem

tpa ambr hindi poem

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तपा अंबर
झुलस रही क्यारी
प्यासी है दूब।
सुलगा रवि
गरमी में झुलसे
दूब के पांव।
काटते गेहूं
लथपथ किसान
लू की लहरी।
रूप की धूप
दहकता यौवन
मन की प्यास।
डूबता वक्त
धूप के आईने में
उगता लगे।
सूरज तपा
मुंह पे चुनरिया
ओढ़े गोरिया।
प्यासे पखेरू
भटकते चौपाये
जलते दिन।
खुली खिड़की
चिलचिलाती धूप
आलसी दिन।
सूखे हैं खेत
वीरान पनघट
तपती नदी।
बिकता पानी
बढ़ता तापमान
सोती दुनिया।
ताप का माप
ओजोन की परत
हुई क्षरित।
जागो दुनिया
भयावह गरमी
पेड़ लगाओ।
सुर्ख सूरज
सिसकती नदियां
सूखते ओंठ।
जलते तृण
बरसती तपन
झुलसा तन।
तपते रिश्ते
अंगारों पर मन
चलता जाए।
दिन बटोरे
गरमी की तन्हाई
मुस्काई शाम।

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