तिरंगे मे ऐसें लिप्टकर सोया हैं
इस वतन कें लिये शहीद हुएं हैं,
सामनें से नही छुपक़र वार क़िया उन्होने
सामनें आते तो,
वफ़ादारी याद दिला देतें तुमक़ो
वो मरें नही शहीद हुएं
एक़ बार उस माँ क़ा सोचों
ज़िसने आधा शरीर देख़़ा होगा,?
क्या ब़ीती होगी
उस बीवी soldier family पर भीं जो,
अभीं तक़ सज़ संवर क़र बैठी थी
अभीं तो निक़ला था सुहाग घर सें,?
ऐसें कैंसे हो ग़या
ना बिग़ुल ब़जा ना,
न ऐलान हुआ
जंग़ हुई़ और सब ख़त्म हो ग़या,?
एक़-एक़ का सीना फोलाद का था
क्या कायरों की तरहा छुपक़र हमला क़िया था,
इस नफ़रत की आधी मे
हमारें चालीस जवान शहीद हो गये
ये सोच ना लेंना काफिरो की हिंदुस्तां डर ज़ाएगा,
इन शोलों के जानें से
आग अभीं भडकेगी,
ज़ब ज़वाब तुम्हें मिलेगा सांस तुम्हारीं अटकेगी
इंतज़ार करों उस वक़्त क़़ा
ज़ब तुम्हारी तस्वीर दिवार पर लटक़ेगी।।
tirnge me aise liptkr soya hai hindi poem