ठिठुर रहे बच्चे बूढ़े सब,
सर्दी की ऋतु आई।
तन पर बोझ बढ़ा कपड़ों का,
कैसी आफ़त आई।
रूई समान घने कुहरों से,
टप-टप टपके बूँदें।
पेड़ों पर दूबके पक्षीगण,
पल-पल आँखें मूंदे।
सूरज आँख मिचौली खेले,
व्यथित हुए जन सारे।
बड़ी-बड़ी रातें, दिन छोटे,
गायब चाँद-सितारे।
thithur rhe hai hindi poem