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thithur rhe hai hindi poem

thithur rhe hai hindi poem

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ठिठुर रहे बच्चे बूढ़े सब,
सर्दी की ऋतु आई।

तन पर बोझ बढ़ा कपड़ों का,
कैसी आफ़त आई।

रूई समान घने कुहरों से,
टप-टप टपके बूँदें।

पेड़ों पर दूबके पक्षीगण,
पल-पल आँखें मूंदे।

सूरज आँख मिचौली खेले,
व्यथित हुए जन सारे।

बड़ी-बड़ी रातें, दिन छोटे,
गायब चाँद-सितारे।

thithur rhe hai hindi poem
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