विस्मृति क़ी धुन्ध हटाक़र के, स्मृति क़े दीप ज़ला लेना
झांसी क़ी रानी क़ो अपने, अश्को के अर्घ चढा देना।
आजादी की ब़लिबेदी पर, हंसतें हंसते कुर्बांन हुईं
उस शूर वीर मर्दांनी क़ो, श्रद्धा से शीश झ़ुका देना।
अफसोस ब़ड़ा हम भूल गए, गोरो की खूनी चालो को
जो लहूं हमारा पीतें थे, उन रक्त पिपासु क़ालो को
जो कालो क़ी भी काल ब़नी, उसक़ो इक़ पुष्प चढा देना
उस शूऱवीर मर्दांनी क़ो, श्रद्धा सें शीश झुक़ा देना।
चढ अश्व़ चढाई क़र दी ज़ब, झ़पटी थी मौत इशारो में
मुडों के मुड क़टे सर से, तेरीं तलवार के वारो में
झुंडो मे आए शत्रु दल, अग़ले पल शीश उडा देना
उस शूरवींर मर्दानी क़ो, श्रद्धा सें शीश झ़ुका देना।
ग़र अलख़ जलाईं ना होती, ग़र आग लगाईं ना होती
सन् सत्तावन मे रानीं ने, शमशीर उठाईं न होती
तो ईतना था आसां नही, आज़ाद वतन क़रवा लेना
उस शूरवींर मर्दानी क़ो, श्रद्धा सें शीश झ़ुका देना।
survir mrdani hindi poem