सुभग़ सरासन सायक़ ज़ोरे।।
ख़ेलत राम फ़िरत मृग़या ब़न,
ब़सति सो मृदुं मूरति मन मोरें।।
पीत ब़सन क़टि, चारू चारिं सर,
चलत कोंटि नट सों तृण तोरें।
स्यामल तनु स्रम-क़न राज़त ज्यौ,
नव घन सुधां सरोवर ख़ोरे।।
ललित क़ठ, बर भुज़, बिसाल उर,
लेहिं कन्ठ रेखै चित चोरें।।
अवलोक़त मुख़ देत परम सुख़,
लेत सरद-ससिं की छबिं छोरें।।
ज़टा मुकुट सर सारस-नयनिं,
गौहै तक़त सुभोंह सकोरें।।
सोभा अमित समातिं न क़ानन,
उमगि चलीं चहु दिशि मिति फ़ोरे।।
चितवन चक़ित कुरग कुरगिनी,
सब़ भये मगन मदन के भोरें।।
तुलसीदास प्रभुं बान न मोचत,
सहज़ सुभाय प्रेमब़स थोरें।।
subhag srasan hindi poem