सर्दी फिर से लौट आई है
मौसम कितना सरमाई है मंज़र मंज़र बर्फानी है गर्मी ने छुट्टी पाई है थर थर सारे काँप रहे है जैसे अन्दर से घबराई है बिस्तर से है नौ दो ग्यारह गर्मी कैसी हरजाई है छत पर बर्फ जमी है जैसे नम आलूदा अंगनाई है मफलर स्वेटर दस्तानो की शाम ही से मुंह दिखलाई है पंखे कूलर बंद पड़े है ए सी ने फुरसत पाई है लस्सी शरबत गुम सुम गुम सुम चाय की फिर बन आई है एक बस्ता दीवार व दर है ठंडक फर्श पे उग आई है रात होते ही घर लौट आओ हैदर इस में दानाई है
srdi fir se lot aai hai hindi poem