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srdi aai srdi aai hindi poem

srdi aai srdi aai hindi poem

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सर्दी आई, सर्दी आई
ठंड की पहने वर्दी आई।
सबने लादे ढेर से कपड़े
चाहे दुबले, चाहे तगड़े।

नाक सभी की लाल हो गई
सुकड़ी सबकी चाल हो गई।
टिठुर रहे हैं कांप रहे हैं
दौड़ रहे हैं, हांप रहे हैं।

धूप में दौड़ें तो भी सर्दी
छाओं में बैठें तो भी सर्दी।
बिस्तर के अंदर भी सर्दी
बिस्तर के बाहर भी सर्दी।

बाहर सर्दी घर में सर्दी
पैर में सर्दी सर में सर्दी।
इतनी सर्दी किसने कर दी।
अण्डे की जम जाए ज़र्दी।

सारे बदन में ठिठुरन भर दी।
जाड़ा है मौसम बेदर्दी।

जाती सर्दी
घर के बाहर खिसक रही है
धीरे धीरे सर्दी
आसमान भी खोल रहा है
घिसी सलेटी वर्दी।

सुबह सूरज आकर
धूप की चादर खोले
जाड़ा पंजों के बल चलता
अपनी राह को होले।

धूप की गर्मी में सिक जाएं
घर के कोने खुदरे
एड़ी तलवों और उंगलियों
की हालत भी सुधरे।

पहले उतरे ऊनी मोज़े
फिर मफ़लर भी जाए

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