शराफत की जमाने अब कहां
यूं अकेले मत पड़ो यहां-वहां
समूहों के झुंड आसपास हैं,
कोई साधारण कोई खास है
हर कोई खींचने की फिराक में,
मना करो, आ जाते है आंख में
जंगल छोड़ भेड़िए शहरों में आने लगे,
सुंदर लिबासों में शरीफों को लुभाने लगे
ख्वाब बेचने का व्यापार चल पड़ा,
लालच में हर कोई मचल पड़ा
समूहों में हर चीज जायज हो जाती,
विचारधाराएं खारिज हो जाती.
नहीं दौर के तर्क नए,
सत्य स्वयं भटक गया,
इंसान इंसानियत छोड़,
समूहों में अटक गया.
ईमान कम बचा,
नियति तो बहुत स्पष्ट है,
शिकायत किससे करें,
जब पूरा तंत्र ही भ्रष्ट है.
sraft ki jmane ab kha hindi poem