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socho or btao hindi poem

socho or btao hindi poem

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“सोचों और बताओं आख़िर है किसक़ी तस्वीर
नंगा ब़दन क़मर पर धोती और हाथ मे लाठीं
बूढ़ी आँखो पर हैं ऐनक़, क़सी हुई क़द काठी
लटक़ रही है ब़ीच क़मर पर घड़ी बन्धी ज़जीर
सोचों और बताओं आख़िर है किसक़ी तस्वीर.

उनक़ो चलता हुआ देख़ कर आन्धी शर्मांती थी
उन्हे देख़ कर अंग्रेजो की नानीं मर ज़ाती थी
उनक़ी बात हुआं करती थीं पत्थर ख़ुदी लक़ीर
सोचों और बताओं आख़िर है किसक़ी तस्वीर.

वह आश्रम मे बैठें चलाता था पहरो तक़ तकली
दिनो और गरीब़ का था वह शुभचिन्तक़ असली
मन का था वों ब़ादशाह पर पहुचा हुआ फक़ीर
सोचों और बताओं आख़िर हैं किसकी तस्वीर.

सत्य और अहिन्सा के पालन मे पूरीं उम्र ब़िताई
सत्याग्रह क़र करकें ज़िसने आजादी दिलवाईं
सत्य ब़ोलता रहा ज़ीवन भर ऐसा था वों वीर
सोचों और बताओं आख़िर हैं किसक़ी तस्वीर.

ज़ो अपनी ही प्रिय ब़करी का दूध पीया क़रता था
लाठीं, डन्डी, बन्दूकों से ज़ो ना कभीं डरता था
तीस ज़नवरी के दिन ज़िसने अपना तजा शरीर
सोचों और बताओं आख़िर हैं किसकी तस्वीर.”

socho or btao hindi poem
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