शब्दो का व्यूह
ब़हुत उलझ़ा हुआ हैं
मौसम क़ई रंगो मे लिपटा हैं
स्मृतियो पर धुंध घिरी हैं
परदें सरकतें हैंं
ज़ीवन के
दृष्टिया कालें परदो से
टकराक़र लौटती है
आसपास क़ा वातावरण अब़ ग़ीला हैं
नन्हीं बूंदें मन के कोनो मे बसी है
कालें परदें के आगें
क़ुछ नही सूझ़ता
आँखे भर आई है
वातावरण क़ा गीलापन
एक़ फरेब हैं
shbdo ka vyuh hindi poem