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sdiya gujar gyi hindi poem

sdiya gujar gyi hindi poem

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सदिया गुजर गयी किसी को अपना बनाने में,
मगर एक पल भी न लगा उन्हें हमसे दूर जाने में…
लोगो की साजिशों का रंग उनपे ऐसा छाने लगा,
के उसके बाद तो हम उन्हें अपने दुश्मन नज़र आने लगे….
हम फिर भी हस्ते रहे उनके जुल्मों को सह कर भी,
धीरे धीरे उनके सितम सह कर हमें मजा आने लगा……..
जब थक गए हमारी रूह तक को तड़पा कर वों,
तब वो धीरे धीरे हमसे दूर जाने लगे……
ये गम तन्हाई दर्द और यादोँ के साये,
ये सब तोहफ़ा हमनें उनसें ही है पाए….
मेरी ग़लती सिर्फ़ इतनी सी थी के मैं वफ़ादार निकला,
जितने दिल से की उनकी मोहब्बत में उतना ही बड़ा गुन्हेगार निकला….

sdiya gujar gyi hindi poem
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