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sathi ger lgta hai hindi poem

sathi ger lgta hai hindi poem

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मुहब्बत अगर नहीं हो बीच साथी गैर लगता है,
हर बात में उसकी फिर तो एक बैर लगता है।

अगर मन में छुपी बातों को कोई जान लेता है,
सफ़र जीवन में ऐसे मीत के संग सैर लगता है।

सर को झुका इंसान नें इस जग को जीता है,
बड़ा होशियार है वो अगर किसी के पैर लगता है।

किसी को दूर कर देने से अब भी डोर ना टूटी मुझे तो,
आज भी वो पास दिल के खैर लगता है।

सांस तो चल रही है पर यही जीवन नहीं होता हर लम्हा,
बड़ा नीरस एक मीत के बगैर लगता है।

sathi ger lgta hai hindi poem
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