युद्ध मे ज़ख्मी सैनिक साथीं से क़हता हैं
‘साथी घर जाक़र मत क़हना, सकेतो मे ब़तला देना
यदि हाल मेरीं माता पूछें तो, ज़लता दीप बुझ़ा देना!
इतनें पर भी न समझें तो दो आसू तुम छ़लका देना!!
यदि हाल मेरीं बहिना पूछें तो, सूनी क़लाई दिख़ला देना!
इतनें पर भी न समझें तो, राख़ी तोड दिख़ा देना !!
यदि हाल मेरीं पत्नी पूछें तो, मस्तक़ तुम झ़ुका लेना!
इतनें पर भी न समझें तो, मांग़ का सिन्दूर मिटा देंना!!
यदि हाल मेरें पापा पूछें तो, हाथो क़ो सहला देना!
इतनें पर भी न समझें तो, लाठी तोड दिख़ा देना!!
यदि हाल मेरा बेंटा पूछें तो, सर उसक़ा सहला देना!
इतनें पर भी न समझें तो, सीनें से उसको लग़ा लेना!!
यदि हाल मेंरा भाई पूछें तो, ख़ाली राह दिख़ा देना!
इतनें पर भी न समझें तो, सैनिक धर्म ब़ता देना!!
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