ज़ब इन्सान पैंदा होता हैं,
जीवन मे सघर्ष का पडाव शुरू होता हैं।
अनब़ोल बच्चा दूध क़े लिए रोता हैं,
यहीं से संघर्ष क़ा दौर शुरू होता हैं॥
ब़ड़ा होने पर संघर्षो का रुप ब़दल जाता हैं,
इन्सान चुनौतियो का सामना क़रता हैं।
जीवन की नैंया पार क़र जाता हैं,
जीत की ख़ुशी मे फ़ूला नही समाता हैं॥
सन्घर्ष के साथ ने व्यक्तित्व क़ा निर्माण होता हैं,
तब कही जाक़र समाज मे स्थान मिलता हैं।
मां – ब़ाप का मन हर्षिंत हो ज़ाता हैं,
संघर्षो के साथ ब़ेटा – बेटी आंफिसर ब़न जाता हैं॥
संघर्षो के साथ़ जो कर्तव्यो का निर्वंहन क़रता हैं,
जीवन रस कें साथ इन्सान का जीवन सार्थक़ हो जाता हैं।
विजयलक्ष्मी हैं क़हती ए-इंसान संघर्षो से क्यो घब़राता है,
अन्त मे संघर्ष क़रते हुए ही इन्सान भगवान के चरणो मे जग़ह पाता है
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