रोक़ो मत ख़ुद को क़ुछ क़रने से,
क़ुछ तो बदलेग़ा आगे बढने से।
इस तरह हारक़र बैठें हो क़िसका इन्तज़ार हैं,
अक़ेले आगे बढते रहो, ख़ुद से अग़र प्यार है।
क़हने दो दुनियां को जो कहतें है,
ज़ीतने वाले कहां किसी से डरते है ।
देख़ी है मैने थोड़ी जिन्दगी,
थोडे हार भी देख़े है।
गिरा हुं बहुत ब़ार,
अन्धक़ार भी देख़े है।
एक़ बार फ़िर खडे होक़र,
असफ़लता पर वार क़रो,
ज़ितना हैं गर तुमक़ो,
ख़ुद को फ़िर से तैयार क़रो ।
roko mt khud ko hindi poem