राणा की वीर भुजा पर बलिदान दिखाई देता था
चेतक के स्वामी भक्ति पर अभिमान दिखाई देता था.
रण बन्कुर में रण डेरी जब जब बजाई जाती थी.
राणा के संग चेतक की पीठ सजाई जाती थी.
युध्द भूमि में जब राणा सिंहो से गरजा करते थे.
दुश्मन के ऊपर जब मेघों से बरसा करते थे.
शत्रु राणा को देख पहले ही डर जाता था
पल भर में राणा का भाला छाती में धस जाता था.
रण भूमि में केवल तलवारो की टंकार सुनाई देती थी .
कटते दुश्मन की मुण्डो की चित्कार सुनाई देती थी
पवन वेग से तेज सदा चेतक दौडा करता था.
दुश्मन देख उसे रण को छोडा करता था.
राणा और चेतक जहा से निकल जा जाया करते थे
शत्रु के पौरुष वही धरा पर गिर जाया करते थे.
रण बीच घिरे थे राणा दुश्मन भी भौचके थे
देख चेतक की ताकत को सब के अक्के बक्के थे.
युद्ध भूमि में जब शंख नाद हो जाता था
राणा के अन्दर काल प्रकट हो जाता था
राणा का वक्षस्थल जिस दिशा में मुड़ जाता था.
चेतक उसी दिशा में हिम गिरि सा अड जाता था.
विश्व पटल पर तेरी चर्चा अब हर कोई गायेगा.
चेतक की स्वामी भक्ति पर जन जन शिश नवायेगा .
rana ki veer bhuja hindi poem