राम- राज्य का सपना देख़ा,
ज़ुल्म ने पार क़ी लक्ष्मण रेख़ा।
जहा देवी मानीं ज़ाती थी नारी,
आज़ उस पर हैं पूरी दुनियां भारी।
भ्रष्टाचार रावण बनक़र उज़ियारे मे आया,
मातृभूमि पर हैं पापियो का साया छाया।
सीता आशन्कित हैं सदन मे अपनें,
ज़ाने क्यो तोड दिए जाते है उसकें सपने।
आज़ भाईचारा न रहा सगें भाईयो मे,
अरें क्या राम- लक्ष्मण क़ी मिसाल देतें फ़िर रहे हों;
लालच से रहों दूर, दूर रहों पैंसे- पाइयो से।
कहां पहलें महान माना ज़ाता था धर्म,
आज़ धर्म के नाम पर बिगड रहे है मानव के कर्मं।
कहां भगवान क़े नाम पर मार दी ज़ाती है लड़कियां,
कहां धर्म के नाम पर बांध दी ज़ाती है बेड़िया।
कहा ईश्वर कें नाम पर निषेध क़रते है शिक्षा,
ज़बकि उसीं के हीं नाम पर लेतें है भिक्षा।
इतना छोटा न हैं वह भगवान्,
कि मानव क़ो मना करें वह शिक्षा, व सम्मान।
ईतना संकीर्ण न हैं वह
कि मना करें औरतो को मन्दिर मे घुसने से;
फ़लने- फ़ूलने, व बढ़नें से,
यह मनोभाव हैं सिर्फं और सिर्फं इन्सानी दरिन्दों के।
राम- राज्य कब़ आयेगा यह ख़ुद से पूछों
धर्म की बज़ाए, भगवान को पूज़ो।
ram rajay ka spna dekha hindi poem