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raat barh barh bje hindi poem

raat barh barh bje hindi poem

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रात बारह बारह बजे
आँधी के साथ उड़ने लगी
घर की खपरैल
पानी के साथ गिरते ओलों से
घबरा गई माँ
और बढ़ गई पिता की चिंता

माँ टपकती छत के नीचे से
सामान हटाती हुई
कोसने लगी इंद्र को

पिता खटिया पर बिछी
कथरी उठा जा बैठे पौर में
और उखड़ती हुई साँस से
चिल्ला रहे थे
“गेहूँ भीतर धरो
कपड़ा लत्ता उठा लो
चखिया पे फट्टा डार दो”

असमय बरसात से
बैठ गया माँ बाप का कलेजा
और मैंने डबडबाई आँखों से
पूरे घर को हिलते हुए देखा

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