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prkriti ki hai chavi hindi poem

prkriti ki hai chavi hindi poem

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प्रकृति की है छवि निराले,
क्षण-क्षण अपना दुखड़ा बदले,
तपती सूरज की किरणों से,
धरती के तन को दहकाए,
गरम हवा से सागर का जल,
भाप बन उड़-उड़ जाए,
उमड़-घुमड़ कर बादल बनते,
तड़-तड़-तड़ बिजिल चमकाते,
काले-काले नभ के बादल,
छम-छम-छम बरसा करते,
वर्षा धरती की प्यास बुझाती,
चारों ओर हरियाली छाती,
तरह-तरह के हम सब्जी पाते,
फल-फूलों से घर भर जाते,
पृथ्वी जब थर्राती जाड़े से,
सूरज की किरने उसे बचाती,
घर बगिया में बिखर-बिखर,
खेतों में वो फसल पकाती,
सौरभ की शीतल छाया में,
चंचल पग से धरती पर चलती।

prkriti ki hai chavi hindi poem
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