कि क्या लिखु की वो परियो का रूप होती है
या कड़कती सर्दियों में सुहानी धुप होती है
वो होती है चिड़िया की चचाहट की तरह
या कोई निश्चिल खिलखलाहट
वो होती है उदासी के हर मर्ज की दवा की तरह
या उमस में शीतल हवा की तरह
वो आंगन में फैला उजाला है
या गुस्से में लगा ताला है
वो पहाड़ की चोटी पर सूरज की किरण है,
वो जिंदगी सही जीने का आचरण है
है वो ताकत जो छोटे से घर को महल कर दे
वो काफिया जो किसी गजल को मुकम्बल कर दे
जो अक्षर ना हो तो वर्ण माला अधूरी है
वो जो सबसे ज्यादा जरूरी है
ये नही कहूँगा कि वो हर वक्त सास-सास होती है
क्योंकि बेटियां तो सिर्फ अहसास होती है
उसकी आँखे ना गुड़ियाँ मांगती ना कोई खिलौना
कब आओगे, बस सवाल छोटा सा सलोना
वो मुझसे कुछ नही मांगती
वो तो बस कुछ देर मेरे साथ खेलना चाहती है
जिंदगी न जाने क्यों इतनी उलझ जाती है
और हम समझते है बेटियां सब समझ जाती है
priyo ka rup hoti hai hindi poem