पलकों में इन्द्रधनुष तिर गऐ बेमौसम सावन-घन घिर गऐ क्षितिजों की बाँहों में तैर गई साँवलिया प्यास खंडित होकर सहसा बिखर गऐ प्रणय के समास पतझर के अनहोने अनजाने रंग उमड़-घुमड़ साँसों पर फिर गऐ बेमौसम सावन-घन घिर गऐ फिसल गऐ प्राणों की सतहों से रसभरे प्रभाव बर्फ़ीले भावों में आग लगी, जल उठे अलाव जीवन-यापन के वे मृदुल सरल ढंग टूट-टूट टहनी से गिर गऐ बेमौसम सावन-घन घिर गऐ
plko me indardhnush hindi poem