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plko me indardhnush hindi poem

plko me indardhnush hindi poem

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पलकों में इन्द्रधनुष तिर गऐ
बेमौसम सावन-घन घिर गऐ
क्षितिजों की बाँहों में
तैर गई साँवलिया प्यास
खंडित होकर सहसा
बिखर गऐ प्रणय के समास
पतझर के अनहोने अनजाने रंग
उमड़-घुमड़ साँसों पर फिर गऐ
बेमौसम सावन-घन घिर गऐ
फिसल गऐ प्राणों की
सतहों से रसभरे प्रभाव
बर्फ़ीले भावों में
आग लगी, जल उठे अलाव
जीवन-यापन के वे मृदुल सरल ढंग
टूट-टूट टहनी से गिर गऐ
बेमौसम सावन-घन घिर गऐ

plko me indardhnush hindi poem
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