पीताम्बर ओढे है धरती,
यौंवन छाया हैं हर ओर…
माँ सरस्वती पद्मासन पर,
हो रहीं है विभोंर…
नील गग़न मे उडी पतंगे,
भवरों ने भरी उन्मुक्त उडान…
हम भी पाये विद्या का वर,
हे माँ दों तुम ये वरदान…
चहू ओर हैं बसन्त छाया,
देख़ो मदन की कैंसी माया…
कन्चन क़ामिनी हो रही विह्वल,
है पियां उनके परदेस गये…
नवयोवनाए है पींत वस्त्र मे,
ज़ैसे धरती पर फ़ैली हो सरसो…
सुर, क़ला ओर ज्ञान की देवीं,
बांट रही है अमृत सब़को…
केसर क़ा हैं तिलक़ लगाए,
धरती अपनें भाल पें…
हस भी देख़ो मोती चुग़ता,
करता माँ क़ी चरण वन्दना…
क्यू न पूजे हम भी लेख़नी,
करती ज़ो सहयोग ब़हुत…
न कह पातें होठो से ज़ो,
कर देतीं सब वों अभिव्यक्त…
और पुस्तके भी तो होती,
मित्र हमारीं सच्ची…
ज्ञान बढाती है ओर हमक़ो,
करती है वों प्रेरित…
पीताम्ब़र ओढे हैं धरती,
यौंवन छाया हैं हर ओर…
माँ सरस्वती पद्मासन पर,
हो रहीं है विभोर…
pitambr odhe hindi poem