पहलीं दीवाली मनाईं थी ज़नता ने रामराज्य क़ी! उस प्रज़ा के लिये क़ितनी थी आसां भलाईं और बुराईं की पहचान। अच्छा उन दिनो होता था- ब़स अच्छा और ब़ुरा पूरीं तरह से ब़ुरा। मिलावट राम और रावण मे होतीं नही थी उन दिनो। रावण रावण रहता औंर राम राम। ब़स एक ब़ात थी आम कि विज़य होगी अच्छाईं की बुराईं पर राम क़ी रावण पर। द्वापर मे भी कन्स ने कभीं कृष्ण का नही क़िया धारण रूप बनाये रख़ा अपना स्वरूप। समस्या हमारीं हैं हमारें युग के धर्मं और अधर्मं हुए है कुछ ऐसे गडमड कि चेहरें दोनों के लगते है एक़ से। दीवाली मनानें के लिये आवश्यक हैं रावण पर ज़ीत राम क़ी यहा है बुश और है सद्दाम दोनो के चेहरें एक़ कहा है राम ?
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