पेड़
बिलख बिलख कर रो रहा है
दास्ताँ अपनी सुना रहा है
जमीं से हमें न उखाड़ो
जमी ही हमारा आसरा है
कुल्हाड़ी जब मुझपे चलाते हो
रक्त रंजीत हो जाता हूँ
सारे दर्द सेह कर भी
तुम्हे सब कुछ दे जाता हूँ
पेड़
बिलख बिलख कर रो रहा है
दास्ताँ अपनी सुना रहा है
जमीं से हमें न उखाड़ो
जमी ही हमारा आसरा है
कुल्हाड़ी जब मुझपे चलाते हो
रक्त रंजीत हो जाता हूँ
सारे दर्द सेह कर भी
तुम्हे सब कुछ दे जाता हूँ
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