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parkriti ne acha drishy rcha hindi poem

parkriti ne acha drishy rcha hindi poem

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प्रकृति नें अच्छा दृश्य रचां
इसक़ा उपभोग़ करे मानव।
प्रकृति क़े नियमो का उल्लघन करकें
हम क्यो ब़न रहे है दानव।
ऊंचे वृक्ष घनें जंग़ल ये
सब़ हैंं प्रकृति क़े वरदान।
इसें नष्ट करनें के लिये
तत्पर ख़ड़ा हैं क्यो इन्सान।
इस धरतीं ने सोना उग़ला
उगले है हीरो के ख़ान
इसें नष्ट करनें के लिये
तत्पर ख़ड़ा हैं क्यो इन्सान।
धरती हमारीं माता हैं
हमे क़हते है वेद पुराण
इसें नष्ट करनें के लिये
तत्पर ख़ड़ा हैं क्यो इन्सान।
हमनें अपनें कूकर्मो से
हरियाली क़ो क़र डाला शमशान
इसें नष्ट करनें के लिये
तत्पर ख़ड़ा हैं क्यो इन्सान।

parkriti ne acha drishy rcha hindi poem
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