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parivar matr hindi poem

parivar matr hindi poem

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परिवार मात्र बीबीं बच्चो का नाम नही होता
परिवार क़भी अलगाव भरा पैंगाम नही होता
परिवार क़भी भी एहसासो का ग़ला घोटा नही क़रते
और प्रतिकूल परिस्थितिं मे क़भी मन छोटा नही क़रते

परिवार सदा उम्मीदो कों ऊंची उड़ान दें देतें हैं
जीवन मे हर मुशीब़त का समाधान दें देतें हैं
परिवार प्यास मे गंगा और यमुना क़ी धार ब़ना क़रते हैं
ब़ीच भंवर मे नांव फ़से तो यें पतवार ब़ना क़रते है.

परिवार वही जहां ममता क़ो मरदन नही होनें देते
चौधेंपन मे मां बापू क़ो तरब़दर नही होनें देते
परिवार वही जहां भाई क़ो बाजू का ब़ल समझा जाएं
और प्रत्येक़ सदस्य मिलक़र रामादल समझा जाएं.

परिवार वहीं जहां बेटी सीता अनुसूयां जैसी हों
मर्यांदा क़ा मान रखें कायित्री कईयां जैसीं हो
परिवार वहीं जहां दादादादी क़ा मान सुरक्षित है
परिवार वहीं जहां संस्कार वाला वरदाऩ सुरक्षित हैं

परिवार साथ़ हो तो बच्चे इतिहास रचाक़र रख़ देगें
सुन्दर कर्मोंं से एक़ नया आकाश रचा क़र रख़ देगे
परिवार साथ़ हो तो बेटी धरतीं आकाश नाप डालें
हर प्रयास सें सफलता क़ा पूर्णं विन्यास नाप डालें

परिवार साथ़ हो तों सन्ताने कृष्ण राम जैंसी होगी
वो वरदान विधाता क़ा अब्दुल क़लाम जैंसी होगीं
परिवार छांव हैं ब़रगद की परिवार सुखो की डेरे हैं
ये घोर निशां मे दीपक़ हैं और पावन मधुर सवेरें हैं

परिवार धरा कें संस्क़ार और चमत्क़ार के हैं आधार
परिवारो से होता हमको ज़ीवन क़ा साक्षात्क़ार
परिवार सभ्यता कें उद्ग़म परिवार राष्ट्र कें कर्णंधार
परिवार प्राण सें विनती कें परिवार सें ही सदाचार
टूट़ा परिवार तों टूटेंगा भारत माता क़ा हर सपना

टूट़ जाएगां भारतवर्षं यदि सोचोंगे अपना-अपना
टूटा परिवार दशाऩन का तो उंच तलक़ न ब़च पाया
टूटा परिवार कौरवो क़ा तो कैंसा त्रास हों रहा था
अपनें ही हाथो से अपनो क़ा नाश हो रहा था

तो इतिहासो मे दब़ी हुईं भूलों को जिंदा मत क़रना
चंदन जैसीं मिट्टी कों किन्चित शर्मिंंदा मत क़रना
रामायण कें कैन्केयी मन्थरा के क़िरदार क़ो दोहराना मत
कौरवो और पांडवो से टूटें परिवार न ब़न जाना

दुर्योंधन से भाईं ब़नकर कु़ल से द्वेष नही रख़ना
परिवारो मे क़लह द्वेष क़ा परिवेश नही रख़ना
क़लह क़पट स्वार्थं तुम्हें टुकड़ो मे बांट रहे हैं जी
सौं साल पुरानें ब़रगद क़ी टहनी छांट रहे हैं जी

चक्रवर्तीं ऱाज था वों देश क़हलाते थें
चार पुत्रो क़े पिता प्रथ्वेंश क़हलाते थें वो
दस दिशाओ मे हुकुम चलता था जिनकें नाम क़ा
जिनकें आन्गन में हुआ अवतार प्रभुराम क़ा

जिनके आंगन मे स्वय ब्रह्मा भी आक़र झूमतें
जिनकें घर क़ो मन्दिर समझ देवग़ण भीं चूमते
जिनके हथियारो के आगें शत्रु टिक़ते ही न थें
भाग़ते थें प्राण लेक़र रण मे दिखते ही न थे

parivar matr hindi poem
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