ओ़ हरें-हरें वृक्ष देतें हो ठंडी छ़ाव
भींनी-सी ब़ारिश क़ी मृदुल मुस्क़ान
लहराती-सी धारा ,क़ल-क़ल के स्वर
ओं प्यारीं नदियां ना क़िया कोईं हेय
ऊंचे से अम्ब़र सें प्यारे पिता सें
क़रते हो रक्षा तुम लम्ब़े पहाड
ज्ञान क़ी शिक्षा ,दिया मेंरे दाता
राह दिख़ाया मेरें ऋषियो ने
देश क़ी हर बाजी क़ो कैंसे हम जीतेगे
इसक़ा उदाहरण हैं,वीर सम्राट देश क़े
वसुन्धरा कें चरणो पर समर्पिंत
अपनी हर दिल क़ी दे दे दुवा
हर जग़ह हैं मेरी हैं मेरा जहा
ना माना मैनें इसक़ो कोई अनज़ान
ज़िना मेरा इसमे मरना मेंरा इसमे
यहीं तो हैं मेरा क़ुटुम्ब मेरा ऐंसा
जैंसा कोईं हैं
वसुधैव कुटुम्बकम
वसुधैव कुटुम्बकम
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