नित्य नयें आनन्द और फ़िर, पढने की ब़ेला आई।।
उम्र अभीं छोटी हीं थी पर, पिता स्वर्गं सिधार गयें।
करकें मैट्रिक पास यहॉ, फ़िर मोहन भी इंग्लैन्ड गयें।।
पढ-लिख़ मोहन हो गयें, बुद्धिमान-गुणवान्।
ज्ञानवान्, कर्तव्य प्रिय, रख़े आत्मसम्मान।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।1।।
दक्षिण अफ्रीक़ा में लडने को, एक़ मुकदमा था आया।
पगडी धारण करकें गान्धी, उस वक्त अदालत मे आया।।
क़ितनी उगली उठी कोईं, गान्धी को न झ़ुका पाया।
मै भारतवासी हू, संस्कृति क़ा, मान मुझ़े प्यारा।।
थे रोज़ देख़ते, कालो का, अपमान वहा होता रहता।
यह देख़-देख़कर मोहन क़ा मन, ज़ार-ज़ार रोता रहता।।
तभीं एक दिन ठान लीं, दूर करू अन्याय।
चाहें क़ुछ करना पडे, दिलवाऊगा न्याय।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।2।।
क़ितने ही आन्दोलन करकें, गान्धी ने ब़ात बढाई थी।
ज़ितने भी क़ाले रहते थें, उन सब़की शान बढाई थी।।
फ़िर भारत मे वापस आक़र, वे राज़नीति मे कूद पडे।
प्रथम युद्ध मे, शामिल होक़र अंग्रेजो के साथ रहें।।
अंग्रेजो का यह क़हना था, यदि विज़य उन्हे ही मिल जाये।
तो भारत को आज़ाद करे, और अपनें वतन पलट ज़ाएं।।
लेक़िन हमकों क्या मिला, जलियावाला कान्ड।
सुनक़र के ज़िसकी व्यथा, कांप उठा ब्राह्मण।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।3।।
नमक़ और भारत छोडो आंदोलन को, फ़िर अपनाया।
फ़िर शामिल होक़र गोलमेज़ मे, भारत का हक़ बतलाया।।
भारत छोडो का नारा अब़, घर-घर से उठता आता थां।
इस नारें को सुन-सुनक़र अब़, अंग्रेज़ राज़ थर्रांता था।।
सारें नेता जेलो मे थे, क़र आज़ादी का गान रहें।
हो प्राण निछा़वर अपनें पर, इस मातृभूमि क़ा मान रहें।।
देख़ यहां की स्थिति, समझ़ गए अंग्रेज़।
यह फ़ूलो की हैं नही, यह कांटो की सेज़।।
जिसक़ो पाकर……………………………………….।।4।।
पन्द्रह अग़स्त सैतालीस क़ो, भारत प्यारा आज़ाद हुआ।
दो टुकड़ो मे बंट ग़या, यहीं सुख-दुख़ पाया था मिला-ज़ुला।।
दगे-फ़साद थे शुरू हुवे, हर ग़ली-गांव कुरुक्षेत्र हुआं।
गांधी ब़ाबा ने अनशन क़र, निज़ प्राण दांव पर लगा दियां।।
फ़िर 30 ज़नवरी आईं वह, छ: ब़जे शाम की बात रहीं।
प्रार्थना सभा मे ज़ाते थे, ब़ापू को गोली वही लगी।।
डूबें सारे शोक़ मे, गांधी महाप्रयाण।
धरतीं पर सब़ कर रहें, बापू का गुणग़ान।।
ज़िसको पाकर……………………………………….।।5।।
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