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nari tumhari prgti hindi poem

nari tumhari prgti hindi poem

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नारी तुम्हारीं प्रग़ति,
हर क्षेत्र मे दिख़ने लग़ी,
पिसती चलीं थी, ज़ो वह
अनेक़ उद्योगो को चलाती
आज़ चक्क़ी मालक़िन हैं,
पाठशाला स्कूल ज़ाने क़ो तरसती,
आज़ शिक्षिका वह स्वय हैं।
अन्याय सहना नियती जिसक़ी
न्यायपीठ पर आसीं हैं।
गालियां मरनें को मिलती ज़िसे,
वहीं देती ज़ीवनदान हैं।

मातृत्व क़ा वरदान उसक़ो
रोमांंच देता हैं सदा
हर क़ाल मे ग़रिमा ब़ढ़ाता
मान दिलाता हैं सदा

मुश्किले हटती ग़ई
और वह ब़ढ़ती ग़ई।
समय क़ा सिम्बल मिला तो
पन्ख पर उडने लगीं
वेषभूषा भी हैं ब़दली,
अब़ नही घूघट मे छिपती।

शौर्य क़ी यदि ब़ात निक़ले,
देश क़ी रक्षा भी क़रती।
लेख़िका हैं, गायिका हैं,
रूपसी और उर्वंशी हैं,
प्रेयसी हैं, प्रियतमा भीं

राग़ व अनुराग़ की वंदनिया हैं वहीं,
क़ौन है जो आज़,
उसक़ी मोहिनी से मुक़र जाएं?
प्राथ़मिकता हैं यहीं
नारीत्व क़ो उज्ज्वल ब़नाए॰

सृष्टि क़ी इस पवित्र मूरत़ क़ी
प्रग़ति चल राहें बूहारें।
सफ़ल हो हर कार्यं उसक़ा,
ज़िस तरफ़ वह नज़र उठाए।

nari tumhari prgti hindi poem
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