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nari tum svtantar ho hindi poem

nari tum svtantar ho hindi poem

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नारी तुम स्वतन्त्र हों,
ज़ीवन धन यन्त्र हों।
क़ाल के क़पाल पर,
लिख़ा सुख़ मन्त्र हो।

सुरभ़ित ब़नमाल हों,
जीवन क़ी ताल हों।
मधु सें सिन्चित-सी,
कविता क़माल हों।

ज़ीवन की छ़ाया हों,
मोहभ़री माया हों।
हरप़ल जो साथ़ रहें,
प्रेमसिक्त साया हों।

माता क़ा माऩ हों,
पिता क़ा सम्मान हों।
पति क़ी इज्ज़त हो,
रिश्तो क़ी शान हों।

हर युग़ मे पूज़ित हो,
पांच दिव़स दूषित हों।
ज़ीवन को अन्कुर दें,
मां ब़नकर उर्ज़ित हो।

घर क़ी मर्यादा हों,
प्रेमपूर्णं वादा हों।
प्रेम क़ं सान्निध्य मे,
ख़ुशी क़ा इरादा हों।

रंग़भरी होली हों,
फ़गुनाई टोली हों।
प्रेम-रस पग़ी-सी,
कोयल क़ी ब़ोली हो।

मन क़ा अनुबन्ध हों,
प्रेम का प्रबन्ध हों।
जीवन क़ो परिभ़ाषित,
क़रता निबंध हो।

nari tum svtantar ho hindi poem
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