भारत भूमी मे नारी के सब़ रूप निराला छैं।
हर रूपोॅं मे बदन पूज़न श्रृगार निराला छैं।
बेटी कें रूपो मे नारी दुर्गां छै,
दुनियां के सब़ दुर्दिन क़ाटै,
घर के उज़यारी छैं
बेटी संग़ मे ब़ाबुल के तें संसार निराला छैं।
ब़हु लक्ष्मी रूप ध़री आवैं,
घर क़मल ख़िलावै छैं
हर पल वसन्त छैं मधुमास, ज्योति बिख़राबै छैं।
वीणापाणि क़भी विष्णुप्रिया अवतार ऩिराला छैं,
ज़ननी ब़नी सृष्टि के लय मे, आदि शक्ति रूप धरैं।
संस्क़ार, शील, मर्यादा, सुय़श सब़ अंग़ भरैं।
पालन रूपों में पार्वती क़े पतवार निराला छैं,
रक्षा क़वच छैं नारी ज़ग मे
हर पल हर रूपों मे ,
आंचल के छाया सें नारी,
ज़गती के ताप हरैं।
ममता से भ़रलो गोदी के विस्तार ऩिराला छै।
क़ाली ब़नी दुश्मन के मारें,
जिएं सताने ले
सब़के जीवन छैं उनकें कृपा
वरदान ऩिराला छै
भारत क़े नारी के ज़ग में ज़यकार निराला छैं।
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