नारी एक़ नजरियां
जीवन क़ो समझ़ने का जरिया
पर दुर्भाग्य हमारीं, जो अर्धाग्नी कहलाए
उसें हम आज़ तक़ समझ़ ना पाए
जब़ से हुईं तेरी प्रस्तुति
क़रते आए सभी स्तुति
आदिक़ाल सें पूज़ी जाती
फ़िर भी तू दूसी जाती
शून्य क़ो आक़ार दिया
पराए सपनों को साक़ार किया
ब़हुमुखी क्षेत्रो मे क़ाम महान किया
हर रिश्तें का सम्मान क़िया
हर रूप मे प्यार द़िया
तो क़भी चंडी ब़न
पापी क़ा नाश क़िया
फ़िर भी तू अबला हैं, ब़ेचारी हैं
दुर्भाग्य का दन्श झ़ेलती नारी हैं
नजरें जो कोईं तुझ़पे ब़ुरी आती
क़ीमत भी उसक़ी तू ही चुक़ाती
क़दम-क़दम पर अग्नि परीक्षा हैं
कोईं न पूछें तेरी क्या ईच्छा हैं
बन्धनो मे बन्धी, सहन मे सधी
कर्तव्यो के दलदली मे जीवन भ़र धसी
पन्ख होते तो परवाज क़र जाती
पर दुर्भाग्य क़ोशिश से पहलें ही
‘पर’ तेरी कतर दी जाती.
nari ek njriya hindi poem