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nabh ke nile aangan me hindi poem

nabh ke nile aangan me hindi poem

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नभ के नीले आँगन में
घन घोर घटा घिर आईं।
इस मर्त्य-लोक को देने
जीवन-संदेशा लाईं।

है परहित निरत सदा ये
मेघों की माल सजीली।
इस नीरस, शुष्क जगत को
करती हैं सरस, रसीली।

इससे निर्जीव जगत जब
सुंदर, नव जीवन पाता।
हरियाली मिस अपनी वह
हर्षोल्लास दिखलाता।

इस वसुधा के अँचल पर
अनुपम प्रभाव छा जाते।
इन हरी घास के तिनकों
में भी मोती उग आते।

इनका मृदु रोर श्रवण कर
कोकिल मधु-कण बरसाती।
तरु की डाली-डाली पर
कैसी शोभा सरसाती।

केकी निज नृत्य दिखाया,
करता फिरता रंगरेली।
पक्षी भी चहक-चहक कर
करते रहते अठखेली।

सर्वत्र अंधेरा छाया
कुछ देता है न दिखाई।
बस यहाँ-वहाँ जुगनू-की
देती कुछ चमक दिखाई।

पर ये जुगनू भी कैसे
लगते सुंदर, चमकीले।
जगमग करते रहते हैं
जग का ये मार्ग रंगीले।

सरिता-उर उमड पड़ा है
फिर से नव-जीवन पाकर।
निज हर्ष प्रदर्शित करता
उपकूलों से टकरा कर।

मृदु मंद समीकरण सर-सर
लेकर फुहार बहता है।
धीरे-धीरे जगती का
अँचल शीतल करता है।

पर ये जुगनू भी कैसे
लगते सुंदर, चमकीले।
जगमग करते रहते हैं
जग का ये मार्ग रंगीले।

सरिता-उर उमड पड़ा है
फिर से नव-जीवन पाकर।
निज हर्ष प्रदर्शित करता
उपकूलों से टकरा कर।

मृदु मंद समीकरण सर-सर
लेकर फुहार बहता है।
धीरे-धीरे जगती का
अँचल शीतल करता है।

nabh ke nile aangan me hindi poem
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