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na khda tu dekh khud ko hindi poem

na khda tu dekh khud ko hindi poem

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ना खड़ा तू देख गलत को
अब तो तू बवाल कर

चुप क्यों है तू
ना तो अपनी आवाज दबा
अब तो तू सवाल कर

ना मिले जवाब
तो खुद जवाब तलाश कर

क्यों दफन है सीने में तेरे आग
आज आग को भी
तू जलाकर राख कर

कमियों को ना गिन तू
ना उसका तू मलाल कर

कुछ तो अच्छा ढूंढ ले
ना मन को तू उदास कर
जो भी पास है तेरे
तू उससे ही कमाल कर

तू उठ कुछ करके दिखा
ना खुद को तू बेकार कर

खुद मिसाल बनकर
जग में तू प्रकाश कर
सोचता है क्या तू
तू वक्त ना खराब कर

जिंदगी जो है तो
जी के उसका नाम कर
रास्ते जो ना मिले
तो खुद की राह निर्माण कर

काल के कपाल पर
करके तांडव तू दिखा
दरिया जो दिखे आग का
प्रचंड अग्नि बन कर
तू उसे भी पार कर

na khda tu dekh khud ko hindi poem
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