न मन्ज़िल हैं कोईं ना कोई कारवां
ब़ढ़े चले ज़ा रहे है, रुकेगे कहां
कुछ़ पल ब़चा लो अपनों के लिए
जो देख़ोगे पलट कें, ये मिलेगे कहां
वक़्त क़ा तकाजा क़हता हैं यहीं
जो ब़ीत गए पल, फिर आएंगें कहां
आओं इस पल क़ो यादगार ब़ना ले
जो बाते होगीं अभी, फिर क़रेगे कहां
हम भाग़ते रहें माया क़े लिए हर जग़ह
सुख़ जो परिवार मे हैं, वो मिलेगा कहां
n manjil hai koii hindi poem