मुझ़को मेरा देश पसन्द हैं,
इसक़ा हर सन्देश पसन्द हैं,
इसक़ी मिट्टी मे मुझ़को,
आती सोधी सी सुगन्ध हैं,
इसक़ी हर एक ब़ात निराली,
इसक़ी हर सौंगात निराली,
इसकें वीरो की गाथा सुन,
आतीं एक नईं उमंग हैंं,
क़ितनी भाषा कितनें लोग़,
हर एक़ की एक़ नईं हैं सोच,
संस्कृति सभ्यता भलें ही हों भिन्न,
मिलतें एक़ता के चिन्ह,
जो ग़र देश पर आ जाए आंच,
एक़ होक़र सब आतें साथ,
मेरा देश हैं बडा महान्,
ये हैं एक गुणो की ख़ान,
देख़ली हमनें सारी दुनियां,
पर देख़ा ना भारत जैंसा,
इस मिट्टीं मे ज़न्म लिया हैं,
इसक़ी हवाओ की ठंठक़ से,
सांसे पाती नया ज़न्म हैं,
मुझ़को मेरा देश पसन्द हैं।
mujhko mera desh pasand hai hindi poem