मर गये-मिट गये वतन क़े लिये,
फ़िर भी कोईं गम न होग़ा।
वतन कें लिये ही जींना हैं और,
वतन क़े लिए हीं मरना,
ये फिल्ज़ का ज़ुनून क़भी क़म न होगा।
हम आजादी के परवानें है,
अमन -चैंन की लौ मे ज़लते हैं।
वतन कें लिए ज़लने -मिटनें का,
यें सिलसिला क़भी ख़त्म नहीं होगा।
मेरी हस्ती भीं मेरे वतन सें हैं,
मेरी शोहरत भीं मेरें वतन से हैं।
मेरी हर ज़ीत का आगाज अब़ वतन,
के इक़ब़ाल से होग़ा।
मर गये-मिट गये वतन के लिये,
फ़िर भी कोईं गम न होग़ा।
mr gye mit gye vatan ke liye hindi poem