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mhngai or berojgari se hindi poem

mhngai or berojgari se hindi poem

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महंगाई और बेरोजगारी से, देश हमारा हुआ लाचार।
कोई न पाया इससे पार, भारत में फैला भ्रष्टाचार।

नजरों में इनकी खजाना था, चुनाव लड़के भाग्य आजमाना था।
जीते चुनाव और बन गये नेता, अब भी न इनका गुजारा होता।
किये घोटाले अरबों कमाये, जनता के दुख इन्हें नजर न आये।
क्षेत्र में अपने कितना खर्च किया, कागजों ने झेला इसका भार।
कोई न पाया इससे पार, भारत में फैला भ्रष्टाचार।

घोटालों में कमी नहीं है, नजरों में इनकी यही सही है
जमीन को भी नहीं छोड़ा है, निर्बलों की गर्दन को मरोड़ा है।
अपंगों को और अपंग बनाया, उनके जीवन को जंग बनाया
सत्ता हाथ में आते ही, ये बन जाते हैं सरमायेदार
कोई न पाया इससे पार, भारत में फैला भ्रष्टाचार।

घोटालों में आया खेल, अपराधी को नहीं होती है जेल
मंत्रियों ने ऐसे काम किये, आदर्श से बने घर अपने नाम किये।
जब नहीं भरा इनका झोला, तब नजर आया इनको कोयला
घोटाले ना रुकते अब तो, बस बदल रहे उनके प्रकार।
कोई न पाया इससे पार, भारत में फैला भ्रष्टाचार

कुछ निजी कंपनियां खुद में मस्त, भ्रष्टाचार में ये रहती व्यस्त
पूरा चाहिए इनको काम, तनख्वाह बढ़ाने का नहीं है नाम।
प्रेम भरा स्वभाव यहां है, अच्छाई न जाने कहां है
आचार-विचार-और सदाचार, सब में लिप्त है भ्रष्टाचार।
कोई न पाया इससे पार, भारत में फैला भ्रष्टाचार।

mhngai or berojgari se hindi poem
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