महानगर के रहने वाले बेटे से
मिलने बापू-अम्मा आए
बीस मंजिले पर चढ़ने से
बहुत ही हैं घबराए।
चारों तरफ है कांक्रीट के जंगल
पशु-पक्षी हैं बिसराए
बंद हवा और धूप देखकर
मन ही मन पछताए।
दरबे जैसे घर में
बहू और बेटा बंद पड़े
ताजी हवा के झोंके
जैसे बीते दिन की बात हुई
पास में लेटा पोता राजा
अंगूठा चूस-चूस चिल्लाए
जोर-जोर से रोता देखकर
पाऊडर घोर-घोर पिलाए।
रोज सबेरे सब निकले घर छोड़कर
सांझ तक लौट न घर आए
छोटा बबुआ दिनभर रोये
झुनझुना देख-देख ललचाये
दादा-दादी की हैं आंखें भर आईं।
जीवन के इस रूप को देखकर
मन में वितृष्णा है हो आई
मृगतृष्णा से इस जीवन से
कैसे छुटकारा पाएं
सोच रहे हैं बुजुर्ग दंपति
मन ही मन भरमाए।
mhanagar ke rhne vale hindi poem